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मॉडल टेनेंसी बिल से मकान मालिकों और किराएदारों को कैसे होगा फायदा?

शिप्रा सिंह अपनी प्रॉपर्टी किराए पर देने की योजना बना रहे लोगों या किराए पर मकान लेने वालों के लिए एक अच्छी खबर है। हाल में ड्राफ्ट किए गए मॉडल टेनांसी बिल 2019 में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे किराएदारों और मकान मालिकों के बीच विवाद की कुछ वजहें दूर हो सकती हैं। मौजूदा कानून कुछ मामलों में किसी न किसी पक्ष को ज्यादा वजन देते हैं। उदाहरण के लिए, सिक्यॉरिटी डिपॉजिट के नाम पर कितनी भी बड़ी रकम मांग सकता है। युवाओं के लिए 10-12 महीनों के किराए के बराबर डिपॉजिट का इंतजाम करना मुश्किल होता है। दूसरी ओर, ऐग्रिमेंट पीरियड खत्म होने के बाद भी प्रॉपर्टी खाली नहीं करने वाले किराएदारों के खिलाफ प्रॉपर्टी मालिकों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है। ताजा बिल दोनों पक्षों को बराबर दर्जा देता है। नाइट फ्रैंक इंडिया के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर (नॉर्थ) मुदस्सिर जैदी ने कहा, 'इस ड्राफ्ट में और प्रॉपर्टी मालिक, दोनों के हितों की रक्षा का इंतजाम है।' आइए देखें इस ड्राफ्ट बिल में कौन से अहम प्रावधान हैं: विवादों के निपटारे के लिए रेग्युलेटर ड्राफ्ट में एक रेंट अथॉरिटी और एक रेंट ट्राइब्यूनल बनाने का प्रस्ताव किया गया है जो किराएदारी से जुड़े विवादों को देखेंगे। अभी ऐसे सभी मसले निचली अदालतों और दीवानी अदालतों में जाते हैं। नांगिया अडवाइजर्स (एंडरसन ग्लोबल) के डायरेक्टर संदीप झुनझुनवाला ने कहा, 'जूडिशियरी पर इतना बोझ है कि ऐसे मामलों के निपटारे में कई साल लग जाते हैं। कभी-कभी तो लोग ऐसे मसले लंबी कानूनी लड़ाई के ही डर से अदालतों में नहीं ले जाते हैं। रेंट कोर्ट बनने से ऐसे विवादों का तेजी से निपटारा हो सकेगा।' पीड़ित पक्ष मामला रेंट कोर्ट और रेंट ट्राइब्यूनल में ले जा सकेगा। मुकेश जैन ऐंड असोसिएट्स के फाउंडर और रियल एस्टेट स्पेशलिस्ट मुकेश जैन ने कहा, 'रेंट अथॉरिटी के आदेशों के खिलाफ रेंट कोर्ट में अपील की जा सकती है और रेंट कोर्ट के आदेशों को रेंट ट्राइब्यूनल में चुनौती दी जा सकती है।' रेंट में बदलाव ड्राफ्ट बिल के अनुसार, मकान मालिक को रेंट में बढ़ोतरी लागू करने के तीन महीने पहले किराएदार को एक नोटिस के जरिए इसकी जानकारी देनी होगी। शार्दूल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर आशू गुप्ता ने कहा, 'ऐग्रिमेंट में अगर यह बात दर्ज न हो तो मकान मालिक एकतरफा ढंग से किराया नहीं बढ़ा सकता है। किराएदार अगर प्रस्तावित बढ़ोतरी पर राजी न हो तो तीन महीने का टाइम पीरियड उसे दूसरा मकान ढूंढने का मौका देगा।' दूसरी ओर किराएदार को भी प्रॉपर्टी खाली करने से पहले मकान मालिक को नोटिस देना होगा और अगर उसने ऐसा नहीं किया तो यह मान लिया जाएगा कि उसने किराए में बढ़ोतरी को स्वीकार कर लिया। रेंट अथॉरिटी किराया तब तय करेगी या उसमें बदलाव करेगी, जब लैंडलॉर्ड या टेनांट ने उसके सामने ऐप्लिकेशन फाइल किया हो। इसके लिए ड्राफ्ट में कहा गया है कि किराएदार और मकान मालिक को लिखित ऐग्रिमेंट करना होगा और उसे संयुक्त रूप से दो महीने के भीतर अथॉरिटी के पास जमा करना होगा। डॉक्युमेंट्स में किराए की रकम, किराएदारी की अवधि और किराए में बदलाव से जुड़ी जानकारी देनी होगी। इसे देखकर अथॉरिटी किराया तय करेगी। मकान खाली करना प्रॉपर्टी खाली करने से जुड़े मौजूदा नियम किराएदारों के पक्ष में झुके हैं। लैंडलॉर्ड मजबूत वैध वजह बताए बिना किराएदार से ऐग्रिमेंट की अवधि के बीच में ही प्रॉपर्टी खाली करने को नहीं कह सकता है। दूसरी ओर, किराया देने में चूक जाने वाले या ऐग्रिमेंट की अवधि खत्म होने पर भी प्रॉपर्टी खाली नहीं करने वालों के लिए दंड का कोई प्रावधान नहीं है। यह मामला दुरुस्त करने के लिए ड्राफ्ट में कहा गया है कि अगर किराएदार दो महीने तक किराया न दे या प्रॉपर्टी में कोई कंस्ट्रक्शन कराना हो तो मकान मालिक किराएदार से प्रॉपर्टी खाली करने को कह सकता है। ड्राफ्ट में यह प्रस्ताव भी है कि अगर किराएदार ऐग्रिमेंट की अवधि के बाद दो महीने तक वहीं टिका रहे तो उसे मंथली रेंट का दोगुना कंपनसेशन लैंडलॉर्ड को देना होगा। दो महीने से ज्यादा तक प्रॉपर्टी खाली नहीं करने पर यह कंपनसेशन मासिक किराए का चार गुना हो जाएगा। वहीं किराएदारों को यह अधिकार होगा कि अगर प्रॉपर्टी की हालत इतनी खराब हो गई हो कि वह रहने लायक न रह गई हो और मकान मालिक उसमें मरम्मत कराने से इनकार कर रहा हो तो किराएदार ऐग्रिमेंट की अवधि के बीच में ही प्रॉपर्टी खाली कर सकता है। सिक्यॉरिटी डिपॉजिट की सीमा किराए का मकान ढूंढने में बहुत ज्यादा सिक्योरिटी डिपॉजिट एक बड़ी बाधा होती है। दिल्ली और पुणे जैसे शहरों में यह 2-4 महीनों के किराए के बराबर होती है, वहीं मुंबई और बेंगलुरु में 12 महीने तक के किराए के बराबर सिक्यॉरिटी डिपॉजिट देना पड़ता है। ड्राफ्ट में कहा गया है कि रेजिडेंशल प्रॉपर्टी के लिए दो महीने के किराए के बराबर और कमर्शल के मामले में एक महीने के किराए के बराबर सिक्यॉरिटी डिपॉजिट होगा। हालांकि अगर प्रॉपर्टी को कोई बड़ा नुकसान हो तो यह लिमिट लैंडलॉर्ड के लिहाज से नाकाफी हो सकती है। झुनझुनवाला ने कहा, 'ऐसे मामले में ओनर कॉस्ट रिकवर करने के लिए रेंट अथॉरिटी के पास गुहार लगा सकता है। हालांकि ओनर को लीगल प्रॉसेस में होने वाली असुविधा बर्दाश्त करनी होगी।'


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